प्रकाश के राजहंस-
भारतीय दीप एवं दीपमालाएँ

बिना प्रकाश के जीवन की कल्पना अधूरी सी लगती है। मानव द्वारा किये गये अविश्कारों में इसलिए अग्नी यानि प्रकाश की खोज महत्वपूर्ण है और यही वजह है कि सभी संस्कृतियों में प्रकाश के वाहक दियों का एक विशिष्ट स्थान है।

अग्नी को दिये के रूप में एक निश्चित समायावधि तक बांधे रखने की कल्पना मानव के मस्तिष्क में कब आई यह कहना मुश्किल है। सम्भवतः शुरुआत में चट्टानों आदि में बने प्राकृतिक गढ्ढों में कपास की बाती डाल कर दिये जलाये जाते होंगे। बाद में शंख, मिट्टी, धातू जैसे पीतल, कांस्य, चांदी, आदि माध्यमों में दिये बनाए जाने लगे। रामायण तथा महाभारत में स्वर्ण-दीपों का उल्लेख आता है। भारत की प्राचीनतम सिन्धु सभ्यता में मिट्टी के दिये का सर्व-साधारण रूप मिलता है, जो आज भी प्रचलित है। समय के साथ साथ विभिन्न अवसरों के लिए विशिष्ट प्रकार के दिये बनाए जाने लगे। प्राचीन ग्रंथों में दीपदान को महत्वपूर्ण दान का दर्जा दिया गया है। दीप से सम्बंधित कई धार्मिक और सामाजिक उत्सव जैसे दीप अमावस्या, दीपावली, गंगा पूजा आदि का प्रचलन दीप के प्रति भारतीय जनमानस की श्रद्धा को दर्शाता है।

मिट्टी का दिया

CSMVS IV 1766

ताम्बे से बना दिया

CSMVS 22.2866

भारतीय संस्कृती में दिया शरीर का और उसकी लौ आत्मा अथवा जीवन-ज्योत का प्रतीक है। भारतीय जनमानस यह मानता है कि आत्मा अमर अथवा अनश्वर है इसलिये मानव के देह त्याग के पश्चात दिया जलाया जाता है ताकि आत्मा के लिये दूसरे जन्म अथवा लोक में जाने की राह प्रकाशित हो सके। मानव जीवन के हर अच्छे–बुरे प्रसंग पर दीप प्रज्ज्वलित करने की प्रथा है। चाहे वह जन्म हो अथवा मृत्यु। घरों अथवा मन्दिरों में की जाने वाली आरती आज भी हमारी संस्कृती का अहम हिस्सा है। दीप आरती के माध्यम से देवता और मानव के बीच, भाई और बहन के बीच, पती और पत्नी के बीच, माता और संतान के बीच सम्बंधों को सुद्रढ़ करने की मनोकामना की जाती है।

यह प्रदर्शनी दियों के रूप में अभिव्यक्त मानव की कलात्मक अभिरुची एवं कल्पनाशीलता के प्रति हमारा आभार है। इसी उम्मीद के साथ की यह दीप हमें आज के अंधकार के कल के प्रकाश की ओर ले जाएंगे।

तेल से प्रज्वलित किए जानेवाले दिये

CSMVS 2012.202

तेल से प्रज्वलित किए जानेवाले दिये

CSMVS 22.2251

तमसो मा ज्योतिर्गमय!

दीपोत्सव दीपावली

कार्तिक मास में दीपावली की गहरी काली अमावस्या की रात हजारों-लाखों दियों के प्रकाश से जगमगा उठती है और पटाखों की रंगीन रोशनी और आवाज भारतीयों के सबसे प्रिय उत्सव दीपावली के आने का उद्घोष करती है। हर घर आकाश कंदिल और पारम्पारिक तेल के दियों से चमचमाता सा दिखाई देता है मानों हम किसी परीलोक में आ गये हो। इस त्योहार की जादूई चमक से कोई भी अछूता नहीं रह सकता, सभी ओर आनंद और उत्साह का माहौल रहता है।

दीपावली से संबंधित कई कथाएँ प्रचलित है। उत्तर भारतीय प्रांतों में दीपावली विशेष रूप से प्रभू रामचंद्र द्वारा लंका नरेश रावण पर विजय के बाद अयोध्या की राजगद्दी सम्भालने के शुभअवसर की स्मृति में मनाया जाने वाला त्यौहार है। रावण पर विजय प्राप्त कर राम अपनी पत्नी सीता के साथ १४ वर्ष का बनवास पार कर जब अयोध्या लौटे तब अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीप मालाओं से जगमगा दिया था। तभी से इस दिन की याद में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।

कार्तिक मास
बारामासा के सचित्र समूह से

CSMVS 57.18/2

दूसरी कथा पाताल लोक के राजा बली से सम्बंधित है। बली राजा दान वीर था। वह अति बलशाली था और देवताओं के लिये भय का कारण बन गया था। देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली जो वामन का रूप धारण कर राजा बली के पास गये। उन्होंने राजा बली से भिक्षा के रूप में उनके तीन कदम जितनी धरती मांगी। दान वीर बली वामन रुपी विष्णु को पहचान नहीं पाया और उसने उतनी जमीन देने का वचन दे दिया। तब विष्णु ने अपना विश्वरूप दिखाया और पहले कदम पर धरती, दूसरे कदम पर स्वर्ग आर तीसरे कदम पर पाताल लोक नाप लिया। इस बदलें में विष्णु ने बली को ज्ञान का दीप दिया जिससे पाताल लोक के अज्ञानरुपी अंधेरे को दूर किया जा सके। उन्होंने उसे यह वरदान भी दिया की प्रतिवर्ष एक दिन बली राजा धरती पर अपना दीप लेकर आएंगे ताकि अमावस्या की काली रात में अज्ञान, लालच, धूर्तता, ईर्ष्या, प्रमाद, क्रोध और आलस्य, जैसे अंधकार को दूर कर सकें। आज भी दीपावली के दिन दीप से दीप जलाकर कार्तिक मास की सुहानी रात में यह त्यौहार विश्व को शांति ओर सौहार्द का संदेश देता है।

भगवान विष्णु का वामन अवतार

CSMVS B 73

भगवान विष्णु का वामन अवतार

CSMVS B 73

झूलते हुवे दिये साधारणतः

मंदिरो एवं गृह्देवालयों में इष्ट देवता की प्रतिमा की पृष्ठभूमि की सजावट के लिये उपयोग में लाए जाते है। उँचाई पर लटके होने के कारण इसका दिव्य मध्यम प्रकाश पूरे गर्भगृह और मुख्य देवता की प्रतिमा को प्रभावी रूप से प्रकाशित करता है।

इन झूलते दियो में पशु – पक्षी की आकृति वाले सजावटी तेल पात्र होते है जिनसे तेल धीरे – धीरे दिये में टपकता रहता है।

तेल का दिया

CSMVS 22.2315

स्मृति दीप

इस प्रकार के दीप अर्पण दीप की श्रेणी में आते है जिन्हे लोग अपने स्वर्गवासी प्रियजनों की याद में अर्पित करते है। इस प्रकार के दीप साधारणतः धातु के होते है और दीपधारी पुरुष अथवा स्त्री के आकार में बनाए जाते है।

स्मृति दीप

CSMVS B 521

दीपलक्ष्मी

इस प्रकार के दिये संपूर्ण भारत में लोकप्रीय है। दिये के रूप में हाथ में दिया लिये हुवे सुसज्जित स्त्री आकृति का अंकन मिलता है जिसे धन संपदा की देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है। देवी लक्ष्मी को साधारणतः कमल अथवा हाथी पर स्थित दर्शाया जाता है। भारत के कुछ प्रांतों में समृद्धि और प्रजनन के प्रतीक रूप में नव विविहित कन्या को हाथी पर स्तिथ दीपलक्ष्मी भेंट करने की परंपरा है।

दीपलक्ष्मी

CSMVS 22.2745

दीप वृक्ष अथवा वृक्ष स्तंभ

इस प्रकार के अलंकारिक दीप मंदिरों में उत्सवों के दौरान प्रज्वलित किये जाते है। यह साधारणतः वृक्ष के आकार में होते है और कल्पवृक्ष का प्रतीक हैं।

महाराष्ट्र में इस प्रकार के दिये जो पत्थर से बनाये जाते है दीप स्तंभ या दीपमाला के नाम से जाने जाते है तथा मंदिरों का अभाज्य अंग होते है। उनकी उंचाई कभी – कभी १० फीट तक भी होती है। इस प्रकार के दीप स्तंभों मे दीप लगाने के लिये छोटे-छोटे आले होते है जो प्रज्वलित हो कर बहुत सुंदर दिखाई देते है। मंदिरों में दीप वृक्ष अर्पण करना पुण्य का काम माना जाता है।

दीप वृक्ष

CSMVS B 85

जालीदार दिये

मिट्टी से बने जालीदार दिये भारत में सिंधू घाटी की सभ्यता से प्रचलित है। मध्यकाल में पितल, ताम्बा जैसे धातूओं से बने जालीदार दीये लोकप्रिय हुये। इन दियों को प्रज्वलित करने पर प्रकाश तथा छाया के संयोजन से आस–पास बहुत सुन्दर आकार बनते है।

झुलनेवाला जालीदार दिया

CSMVS 28.5566

यहाँ प्रदर्शित घुमावदार दिया साधारणतः समुद्री यात्राओं के दौरान उपयोग में लाया जाता था।

जाइरोस्कोपिक (घूर्णाक्षदर्शी) दिया

CSMVS 22.2985