भारतीय कला में राष्ट्रीय प्रतीक

१५ अगस्त २०२२ को भारत अपनी स्वतंत्रता के ७५ वर्ष पूरे कर रहा है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव तक पहुंचने में भारत ने एक लंबी, गौरवशाली और साथ ही संघर्षपूर्ण यात्रा तय की है। आजादी के इसअमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर छत्रपती शिवाजी महाराज वस्तुसंग्रहालय प्रस्तुत कर रहा है राष्ट्रीय प्रतीकों से जुड़ी यह अनूठी प्रदर्शिनी, जिसके लिए संग्रहालय ने अपने विशाल संग्रह से कुछ चुनिंदा कलवास्तुएं चुनी हैं। भारत का इतिहास जितना समृद्ध और गौरवशाली है, इसकी भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता भी उतनी ही मोहक और अनूठी है। इसकी विविधतापूर्ण कलाएं हों या वनस्पति तथा पशु-पक्षी, सभी इसके राष्ट्रीय प्रतीकों में शामिल हैं। या यूं कहें कि इन प्रतीक-चिन्हों  में समूची भारतीयता, भारत की सामूहिक सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय संवेदनाएं झलकती हैं। भारत की यह समृद्ध और विविधतापूर्ण धरोहर कई सदियों के विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों के आपस में गुंथने और समरस होने का परिणाम है। यही कारण है कि इनमें से बहुत-से प्रतीक राष्ट्रीय महत्व रखते हैं। गहन विचार-विमर्श के बाद बहुत ध्यान से चुने गए ये राष्ट्रीय प्रतीक हर देशवासी के मन में गर्व, देशभक्ति और एकता की भावना जगाते हैं।

भारतीय तिरंगे के अंकन वाले साडे तीन आने के डाक टिकिट पर आधारित पोस्ट कार्ड

CSMVS Dis. Acc. 1675/1

तिरंगा

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा – हर भारतीय में अपनी मातृभूमि से गहरे जुड़ाव और लगाव की एक अनूठी भावना जगाता है। इस झंडे की आन, बान और शान के लिए सीमा पर खड़ा हर सैनिक अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार रहता है, तो देश के युवा खिलाड़ी देश-विदेश में आयोजित विभिन्न खेलकूद प्रतियोगिताओं में इस झंडे के गौरव और सम्मान के लिए कई बार असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं।

भारतीय ध्वज तीन रंगों वाला एक आयताकार झंडा है, इसीलिए इसे ‘तिरंगा’ कहते हैं। इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात ३:२ है। तिरंगे में सबसे ऊपर केसरी, बीच में गहरे नीले (नेवी ब्लू) अशोक चक्र के साथ सफेद पट्टी और सबसे नीचे हरा रंग है। केसरी रंग राष्ट्र की शक्ति और साहस का प्रतीक है, सफेद रंग शांति और सत्य का संदेश देता है, जबकि २४ तीलियों वाला नीला अशोक चक्र (धर्म-चक्र) निरंतर गतिशीलता और प्रगति का प्रतीक है। हरा रंग उर्वरता, बढ़त और राष्ट्र के शुभ मंगल को दर्शाता है।

ध्वजारोहण – २६ जनवरी, २००१

CSMVS 2007.326

राष्ट्रगान – जन गण मन

भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ महाकवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा बंगाली में रचा गया था। २४ जनवरी १९५० को देश की संविधान सभा ने इसके हिंदी रूपांतर को राष्ट्रीय गान के रूप में चुना। राष्ट्रगान में भारत की राष्ट्रीय धरोहर और इसके समृद्ध भौगोलिक परिद्रश्य का वर्णन है। जब भी विशिष्ट अवसरों पर देशभक्ति की भावना जगाने के लिए राष्ट्रीय गीत गाया बजाया जाता है तो हर भारतीय के लिए ये अत्यंत गर्व के क्षण होते हैं।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्वाक्षरित छायाचित्र

CSMVS Dis. Acc. 1689

राष्ट्रीय गीत – वंदेमातरम

‘वंदेमातरम’ गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत में रचा गया था और उनके प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यास ‘आनंदमठ’ (सन् १८८२) का भाग था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत देशवासियों की प्रेरणा बना रहा। २४ जनवरी १९५० को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में घोषणा की, कक ‘वंदेमातरम’ गीत ने देश की आजादी की लड़ाई में ऐनतहासिक भूमिका निभाई है, इसलिए इसे राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ के बराबर का सम्मान दिया जाएगा और इसका वही दर्जा होगा।

वन्दे मातरम नारे की बुनाई वाली चन्देरी साडी

CSMVS 98.4

राष्ट्रीय चिन्ह – सिंह स्तंभ

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह – सिंह स्तंभ सारनाथ में मिले सम्राट अशोक के सिंह स्तंभ से लिया गया है। सारनाथ मौर्य वंश के महान शासक सम्राट अशोक की राजधानी थी। इस सिंह स्तंभ में चार दिशाओं की तरफ देखते हुए चार सिंह हैं, जो एक दूसरे से जुड़े हैं। उनके नीचे एक गोलाकार आधार है, जिसमें हाथी, घोड़े, वृषभ और शेर की छवियां तराशी हुई हैं। सभी छववयों के बीच एक खिले हुए उल्टे कमल पर धर्म चक्र बना हुआ है। ये चार पश चार दिशाओं के प्रतीक हैं – हाथी (पूर्व), घोड़ा (दक्षिण), वृर्भ (पश्चिम) और सिंह (उत्तर)। एक साथ खड़े चार सिंह महान शक्ति और एक साझे ऊर्जा-स्रोत के प्रतीक हैं। सबसे नीचे देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ का सुवाक्य अंकित है, जिसका अर्थ है – सत्य की हमेशा जीत होती है। भारत सरकार द्वारा २६ जनवरी १९५० को इसे राष्ट्रीय चिन्ह अर्थात देश की राजकीय मुहर के रूप में अपनाया गया।

सिंह स्तंभ के अंकन की बुनाई वाला शेला

CSMVS 2010.21

राष्ट्रीय पक्षी – मोर

भारत भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है जो प्राकृतिक संपदा से संपन्न है। मोर शानदार रंगों से सजा अत्यंत सुंदर, मनमोहक पक्षी है। गरिमा और सौन्दर्य का प्रतीक मोर पुरे भारत में पाया जाता है। देश की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में मोर का महत्त्व देखते हुए सन् १९६३ में इसे भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया है।

मोर के अंकन वाला केशालंकार

CSMVS 2011.280

राष्ट्रीय पशु – बाघ (टाइगर)

बंगाल का राजसी बाघ या टाइगर मोहक धारियों वाला एक भव्य पशु है। इसके पीले और गहरे रंग के रोएं इसकी खास पहचान है। कभी भारत में खूब पाया जाने वाला बाघ समय के साथ एक दुर्लभ पशु बन गया और इस पर अस्तित्व का खतरा मंडराने लगा। सौभाग्यवश, बाघ प्रेमियों के असाधारण सरंक्षणात्मक प्रयासों से बाघ एक बार फिर भारत के जंगलों की शान बनता जा रहा है, खासकर बाघ अभयारण्यों में। बाघ राष्ट्र की शक्ति, बल, भव्यता, चुस्ती-फुर्ती, बुध्दि और सहशिलता का प्रतीक है। देश में बाघ की व्यापक उपस्थिति को देखते हुए सन् १९७२ में भारतीय वन्यजीव बोर्ड ने शेर की जगह बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया।

रॉयल बंगाल बाघ

संग्रहालय के प्राकृतिक इतिहास विभाग से डायोरामा

राष्ट्रीय पुष्प – कमल

कमल या पद्म एक पवित्र फूल माना जाता है और भारतीय संस्कृति में इसे एक शुभ चिन्ह या प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह प्राचीन भारतीय कला और मिथकों में भी एक विशिष्ट्ट स्थान रखता रहा है। कमल पवित्रता और अलौकिक सौंदर्य  का प्रतीक है और किसी के सद्चरित्र और कोमल हृदय का वर्णन करने के लिए अक्सर कमल का उदाहरण दिया जाता है। क्यूंकि कमल कीचड़ में जन्म लेकर भी ऊपर की ओर उठ कर खिलता हैं आध्यात्मिक जागृति के रूप में इसका गहरा सांकेतिक महत्त्व हैं। इसीलिये बहुत से भारतीय देवी-देवताओं को कमल का फूल थामे या कमल के आसन पर बैठे दिखाया जाता है। २६ जनवरी १९५० को कमल को राष्ट्रीय पुष्प के रूप में अपनाया गया।

कमल के अंकन वाला स्तूप का भाग

CSMVS S 582